निर्जला एकादशी का व्रत कैसे करना चाहिए और निर्जला एकादशी व्रत करने से क्या फायदा मिलता है।

इसका वर्णन ब्रह्म व्वैवर्त पुराण में श्री रवैयास देव और श्री भीमदेव के संवाद में मिलता है। बिना पानी पिए व्रत को निर्जला व्रत कहते हैं। और निर्जला एक

निर्जला एकादशी का व्रत कैसे करना चाहिए और निर्जला एकादशी व्रत करने से क्या फायदा मिलता है।

हरे कृष्णा साल की सभी 24 एकादशियों में से नीरजला एकादशी सबसे अधिक महत्वपूर्ण एकादशी है। 

निर्जला एकादशी का व्रत कैसे करना चाहिए और निर्जला एकादशी व्रत करने से क्या फायदा मिलता है।


निर्जला एकादशी की शुरुआत

इसका वर्णन ब्रह्म व्वैवर्त पुराण में श्री रवैयास देव और श्री भीमदेव के संवाद में मिलता है। बिना पानी पिए  व्रत को निर्जला व्रत कहते हैं। और निर्जला एकादशी का उपवास बिना किसी पानी पिए और खाना खा किया जाता है। 


उपवास के कठोर नियमों के कारण सभी एकादशी व्रतो में निर्जला एकादशी सबसे कठिन होता है। जो साल की सभी एकादशी करने में सक्षम नहीं है उन्हें यह एकादशी का व्रत जरूर करना चाहिए। 


क्योंकि निर्जला एकादशी का उपवास करने से दूसरी सभी एकादशीयो का लाभ व पुण्य मिल जाता है। 


तो हुआ यूं एक बार पांडु पुत्र भीमसेन ने अपने पितामह  श्री लव्यास  देव जी को पूछा की है पितामह माता कुंती द्रौपदी युधिष्ठिर अर्जुन नकुल और सहदेव यह सभी एकादशी का व्रत करते हैं। 


भ्राता युधिष्ठिर भी मुझे यह व्रत करने को कहते हैं। मुझे भी यह पता है की एकादशी का उपवास करना वेदों का आदेश है। पर मुझसे भूख सहन नहीं होती है। मैं सभी नियम अनुसार केशव की


उपासना पूजा अर्चना करना और मेरी क्षमता अनुसार दान करना यह सब करूंगा। पर मैं उपवास नहीं कर सकता। कृपा करके उपवास के बिना एकादशी व्रत कैसे करें इस विषय में आप बताएं।


यह सब सुनकर भीमसेन को व्यास देव जी ने कहा हे भीम अगर नरक के स्थान पर तुम स्वर्ग जाना चाहते हो। तो मास की दोनों एकादशियों का व्रत का पालन तुम्हें करना चाहिए। 


अर्थात दोनों एकादशियों में अन्य ग्रहण नहीं करना चाहिए। इस पर भीमसेन ने कहा वर्ष में आने वाली 24 एकादशियों में उपवास करना मेरे लिए असंभव है।


रात दिन की बात तो क्या मैं तो क्षण भर भी नहीं भूखा रह सकता। बहुत हुआ तो वर्ष में सिर्फ एक दिन में उपवास कर सकता हूं। 


आप मुझे एक ऐसे व्रत के विषय में बताएं जिससे मेरा जीवन मंगल में हो जाए। 

तब श्री ब्यास देव जी ने कहा ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष मैं जब सूर्य ब्रिष अर्थात मिथुन राशि में आता है।


उस समय की एकादशी को निर्जला एकादशी कहते हैं। इस दिन जल भी ग्रहण नहीं करना चाहिए। इस एकादशी में कुछ भी खाना वर्जित है। खाने से व्रत भंग हो जाता है।


इस प्रकार इस एकादशी का व्रत करने से साल की सभी एकादशियों का पुण्य एक व्रत से मिल जाता है। द्वादशी की सुबह अन ,वस्त्र आदि चीजों का अपनी क्षमता अनुसार दान करना चाहिए। 


ब्राह्मण अथवा किसी जरूरतमंद को या किसी  गरीब को मिष्ठान व दक्षणा भी देनी चाहिए।


शंख चक्र वह गधा और पदमा धारण करने वाले भगवान विष्णु ने मुझे बताया था कि जो कोई भी अन्य धर्म का त्याग करके मेरे शरण में आ जाता है। और निर्जला एकादशी का पालन करता है। वह मुझे अत्यंत प्रिय है। और वह निश्चय ही सभी पापों से मुक्त हो पता है।


जब अन्य पांडू पुत्रों ने इस एकादशी के बारे में सुना तो इस व्रत का पालन करने का निश्चय किया। इस समय भीमसेन नेवी इस व्रत का पालन करना शुरू किया। इसलिए इस एकादशी को भीमसेन एकादशी भी कहा जाता है।


अथवा पांडव एकादशी भी कहते हैं। तो हमको भी निर्जला एकादशी के दिन जल का त्याग करना चाहिए और इस दिन अधिक से अधिक भगवान का जाप करना चाहिए। 


उनकी लीलाओं का श्रवण और कीर्तन करना चाहिए। तो आप सभी भी इस मंगलमय  एकादशी का व्रत रखें।


और अपने निकटवर्ती  स्कॉन मंदिर में जाकर भगवान के सुंदर दिव्यो दर्शनों का और मधुर कीर्तन का लाभ उठाना चाहिए 

निर्जला एकादशी के आध्यात्मिक लाभ

1. पुण्य की प्राप्ति: ऐसा माना जाता है कि निर्जला एकादशी का व्रत रखने से सभी प्रकार की एकादशियों के व्रत का पुण्य प्राप्त होता है। यह व्रत जीवन के पापों का नाश करता है और मोक्ष की प्राप्ति में सहायक होता है।


2. धार्मिक उन्नति: व्रत करने वाले व्यक्ति की धार्मिक आस्था और शक्ति में वृद्धि होती है। भगवान विष्णु की कृपा से जीवन में सुख, शांति और समृद्धि आती है।


3. आध्यात्मिक अनुशासन: निर्जला एकादशी का व्रत आत्म-नियंत्रण और अनुशासन सिखाता है, जो जीवन के अन्य क्षेत्रों में भी सहायक होता है।

निर्जला एकादशी के स्वास्थ्य लाभ

1. डिटॉक्सिफिकेशन: निर्जला एकादशी का व्रत शरीर को डिटॉक्सिफाई करता है। बिना जल और भोजन के रहने से शरीर के विषाक्त पदार्थ बाहर निकलते हैं, जिससे शारीरिक और मानसिक शुद्धि होती है।


2. पाचन तंत्र का सुधार: एक दिन के उपवास से पाचन तंत्र को आराम मिलता है, जिससे उसके कार्य में सुधार होता है और पाचन संबंधी समस्याएं दूर होती हैं।


3. वजन नियंत्रण: इस व्रत से वजन नियंत्रित रहता है और मोटापा कम करने में सहायता मिलती है। उपवास करने से मेटाबॉलिज्म भी सुधरता है।


4. मानसिक शांति: उपवास और ध्यान से मानसिक शांति मिलती है। यह तनाव और चिंता को कम करने में सहायक होता है।


धन्यवाद हरे कृष्णा राधे राधे।



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